ट्रेन से उतरते ही आटो पकड के आईएसविटी की तरफ निकल पडा , दिल्ली की भुलभुलईया मे वो आटो को तेज रफ्तार से भगाये जा रहा था , वेशक उसे कुछ ही महीने हुये थे दिल्ली की ईन दिलकस सडकों पर फिर भी वो सिख गया था समझ गया था दिल्ली को अपने अंदाज ए दिल से दौडाने मे । गाडियो के शोर शरावे के विच मे उसने परिचय पूछना शुऱु कर दिया , भाई साहव कहां से हो , मै हिमाचल से , हिमाचल से , वहुत अच्छी जगह है , मैने सर हिलाते हुयै हां मे जवाव दिया , मै यूपी से , पहले मै भी हिमाचल मे काम करता था , सोलन वद्दी उना , सव जगह काम किया , मुझे वहां कम्पनी ने सुपरिवायजर वनाया था , अच्छी जगह है और लोग भी ,पर वचता कुछ नही था , आप सोच रहे होंगे ना फिर आटो कहां से , भाई मजवूरी सव करवा देती है हम वैंक की तयारी कर रहे थे , ग्रेजुएसन किये हैं , पढने मे भी अच्छे थे पर शायद किस्मत ईन्ही तीन पहियों पर थी , वहुत संघर्ष किये , जव कम्पनी मे काम करते थे तो वहां कमीशन उपर का पैसा भी मिलता था हम पूरी ईमानदारी से काम करते थे , पर कमीशन का लालच हमे भी लग गया , वावू जी को जव पता चला कि मेरे पास सैलरी से दुगुने पैसे ईकट्ठे हो गये है तो उन्होने मेरे कान पकडे और कहा कि वेईमानी का एक भी रुपया अगर घर लाया तो घर से वाहर कर दुंगा , वडी मुश्कल से उनको समझाया वुझाया , माफी मांगी तव शांत हुये , पर आप ही वताओ आज के टायम मे कमीशन और उपर के पैसे के विना जीना कया संभव है , और जानने के लिये मैने सर ना मे हिलाया , तभी तपाक से वोल पडा उसी उपर के पैसे को जोड जोड कर मैने यह औटो खरीदा , हालांकि वावू जी को पता नही है उनको मैने वताया है कि जीजा जी से उधार लिये हैं , मै अव खुश हूं अच्छे से कमा लेता हूं कोई सिगरेट दारु का एव नही है तो अच्छी वचत कर लेता हूं , आटो की किस्ते भी पूरी कर दी है भाई की पढाई लिखाई भी करवा दी एक वहन की शादी भी करवा दी , अव आप ही वताओ कव तक दूसरों की गुलामी करते , दिल्ली मे एक काल सैंटर मे लगा , दो दिन मे हमारा कान फोन सुन सुनकर हीटर की तरह गर्म हो गया और सैलरी के नाम पर कुछ खास नही जितना मै वहां भी पांच सालोंं मे कमाता उससे ज्यादा मै यहां अच्छे से कमा लेता हूं , जानता हूं कुछ एक के कारण सव वदनाम होते हैं मगर सव एक से नही होते , यह भी जानता हूं कि हम आटो वालो की कोई ईज्जत नही करता , एक पढा लिखा भी नौकर की तरह आवाज लगाता है , आपने अच्छे से वात की तो सोचा आपके वारे मे भी जान लूं , कयोकि सवको यही लगता कि अगर मै आटो चलाता हूं तो मै एसे ही हूं कोई अनपढ गवार , पर मै पढा लिखा हूं , आटो चलाना मेरा व्यवसाय है मेरी रोजी है और मेरी किस्मत है , शायद यही मेरी जिंदगी की किताव मे लिखा था , पर जव कभी कोई वदतमीजी से वोलते है तो वहुत वुरा लगता , वो लोग अपने मां वाप के पैसो पर एश कर रहे है और उन्हे अपने से वडों और छोटों से वात करने की तमीज भी नही होती , हम अपनी मेहनत से कमाते हैं और उनकी तरह वदतमीजी नही करते , हालांकि सव आटो वाले भी एक से नही है , यहां कयी भरे पडे है नशेडी और जुआरी , जो जितना कमाते है उतना ही उडा देते हैं , एसे लोग क्राईम करने से भी नही हिचकिचाते , हमे तो आज भी वावू जी पीट देते हैं , हमारे भईया वहन सव वावू जी से डरते हैं कयोकि उन्होने वडी सादगी से जीवन दिया है और ईमानदारी का पाठ हमे भी पढाया है , तभी हम ईस प्रकार की नकारात्मक चिजों से कोसो दूर हैं , और हम अभि भी वक्त मिलने पर सरकारी नौकरी की तैयारी करते रहते हैं । वातों का सिलसिला मेरी अंतिम मंजिल की दूरी के जैसे वडता गया , सडक पर लगी लाल वत्ती हर वार वातों के मीटर को डाउन कर देती थी मै महसूस कर रहा था एक चलती फिरती कहानी जो आटो मे मुझे घुमा रही थी अपनी जिंदगी की गलियों मे , उत्सुकता से मै भी कयी सवाल पूछता रहा और वो भी आटो के साईड मिरर मे देखकर मुझे जवाव देता रहा , अव उसे वो जगह नही मिल रही थी जहां मुझे जाना था , वो थी ही एसी भुलभुलईया और ईनकम्पलिट एडरैस, विल्कुल मेरी तरह , पर तपाक से वो भी वोल पडा नही भाई आपको वादा किया है चाहे कैसे भी हो कितना ही ईन गलियों मे अंदर कयो ना जाना पडे आपको आपकी जगह जरुर छोड कर आउंगा , पूछ पूछ कर अंतिम डैस्टीनेशन पर आखिर मै पहुंच गया , मैने पूछा कितने पैसे हुये दोस्त , वो सामने दोनो हाथ जोडे खडा था वोला आपसे वात करके अच्छा लगा , दिल्ली मे एसे लोग कम मिलते जितने देने है दे दिजीये , जो आपको सही लगता , अव मै असमंजस मे था , मैने उससे प्राथना कि आप वता दिजीये मै दे दूंगा जितना आप वोलोगे , वोलता नही आपके जितना जायज लगता उतना दे दो , उसके उपर एक रुपया नही मांगुगा , मेरी जिंदगी मे भी यह एक अलग अनुभव था , उसको मैने आटो का किराया चुक्ता कर दिया था पर अभि भी वो किसी नायक की तरह खडा था मेरी आंखो के रेटिना मे जिसने जिंदगी के अनुभवो मे एक और अनुभव जोड दिया था , एयर ईंडिया कि फ्लाईट मे आयी झपकी मुझे फिरसे याद दिला गयी ईस कहानी को फेसवुक डायरी पर शेयर करने के लिये ।
ईस जिवंत कहानी का शायद यही संदेश होना चाहिये कि
लाख दलदल हो ,पर पाँव जमाए रखिये,
हाथ खाली ही सही,पर ऊपर उठाये रखिये,
कौन कहता है छलनी में,पानी रुक नही सकता,
बर्फ बनने तक,तो हौसला बनाये रखिये..
#अंकुश #दिल्ली #आटो_वाले_की_कहानी

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