हिमाचल के सरकारी स्कूलों से बच्चो के पलायन को कैसे रोके ?

हिमाचल के सरकारी स्कूलों से बच्चो के पलायन को कैसे रोके ?


 आज दिल्ली और पंजाब के मुख्यमंत्री हमीरपुर में आकर शिक्षा पर संवाद कर रहे है । सरकारी स्कूलों की स्थिति पर अपनी चिंता व्यक्त कर रहे है । कहीं न कहीं देखा जाए तो हिमाचल के लोगों ने इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त करना छोड़ सा दिया है । जो चिंतित है उन्होंने बच्चे सरकारी स्कूल से निकाल कर प्राइवेट स्कूल में डाल दिए है और भारी मन से ही सही पर भारी भारी फीस चुका रहे है । और प्राइवेट स्कूल वाले कभी नारद बना कर कभी कृष्ण बनाकर बच्चो से पैसे ऐंठ रहे है जिसे देखकर मां बाप खुश हो रहे है की देखो अपना बच्चा कृष्ण में कितना क्यूट लगता है , 

हालांकि corona काल में फीस के ऊपर काफी बबाल कटा कई बच्चों को प्राइवेट स्कूल से निकाल कर सरकारी में भी डाला गया लेकिन समाधान का कोई विकल्प नहीं निकला ।

हिमाचल के शिक्षा विभाग में कई अफसर तैनात है कइयों की जिम्मेदारी भी तय की गई है पर वो कहते है न सरकारी नौकरी के बाद लोग मौज में रहते है । फिर वो भूल जाते है की महीने के अंत में जो मोटी तनख्वाह मिल रही है वो किसी कमरे में बैठ कर कुर्सी तोड़ने की नही और न ही बेसन और समोसे के साथ चाय पीने के लिए मिल रही है बल्कि सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए मिल रही है । अब अगर इसमें सरकारी को दोष देना चाहो तो दे सकते है क्युकी जवाबदेही उनकी भी बनती है 

हिमाचल में अच्छे स्कूल की कमी नही है , काफी अच्छे भवन वाले स्कूल इस वक्त हिमाचल के कोने कोने में है जिनमे से कई बच्चो के अभाव के कारण बंद भी हो चुके है । लेकिन क्या कारण रहा बच्चो का एकदम से पलायन का । क्या ये एक दम था या धीरे धीरे सरकारी स्कूल खाली हुए ?? 

2010 के बाद से धीरे धीरे स्कूलों में बच्चों की संख्या घटती गई । एक समय में ऐसा दौर भी था जब अच्छी बर्दी और टाई वाले स्कूल में पढ़ने का एक क्रेज था जो की अब सरकारी स्कूल में भी मिल रही है । जहा तक बैठने का सवाल है तो हर तरह की सुविधाएं धीरे धीरे सरकारी स्कूल भी उपलब्ध करवा रहे है । पर फिर भी बच्चे क्यों नही पहुंच रहे ।

अब इसमें मैं अपना व्यक्तिगत अनुभव शेयर कर रहा हु हो सकता है मैं इसमें गलत हूं पर मुझे जो महसूस हुआ मैं यहां पर लिख रहा हु 

ये जो तस्वीर आप ऊपर देख रहे है इसमें भी कई जवाब छिपे है । मेरे अनुभव में दो चीजे सामने आई एक स्कूल से घर तक पहुंचने के लिए सुविधा दूसरी mid day meal ।

हर माता पिता चाहता है की उसका बच्चा सुरक्षित बिना कष्ट के सकुल से घर पहुंचे मगर सरकारी स्कूलों में ये सुविधा उपलब्ध नहीं है हिमाचल के भौगोलिक क्षेत्र को देख कर ये सुविधा देनी चाहिए थी । इसका भी ये कारण है की कई माता पिता सरकारी स्कूल से बच्चो को प्राइवेट में डाल रहे है क्युकी बहा गाड़ी की सुविधा है जो की घर तक पहुंचा देती है । दूसरा mid day meal आज भगवंत मान ने हमीरपुर में एक बात कही की सरकारी स्कूल में मास्टर जी कहते है की कापी किताब भले भूल जाओ पर mid day meal खाने वाला बर्तन मत भूलना । यह काफी हास्यपद बात भी है और असल सच्चाई भी ।आज सकूल में पढ़ाई से जायदा महत्वपूर्ण खाना  हो गया है फिर सकूल और घर में अंतर ही क्या ।। 

तीसरे नंबर पर आता है अध्यापकों की जबावदेही । सोशल मीडिया के माध्यम से भी हम देखते है की फला अध्यापक ने  बच्चो को आसान और अपने सरल तरीकों से चीजे समझाने का प्रयास कर रहे है तो ऐसे तरीके अध्यापकों को भी डूंडना चाहिए। हिमाचल के सरकारी सकूल खराब नही है जिसका उदाहरण हमे मिलता है जब मेरिट लिस्ट आती है आज भी कई सरकारी सकूल का मेरिट में दबदवा रहता है । सरकारी सकूल के पास अपना अच्छा भवन है अध्यापक भी है , अब कुछ लोग कहते है की फला सकूल में तो दो ही अध्यापक है तो जब बच्चे ही दस है तो अध्यापक कितने देंगे । अध्यापक तो तब आयेंगे जब बच्चे हो । और बच्चे कैसे सरकारी सकूल तक पहुंचे ये हम सबके लिए प्रशन है जिसका जवाब जल्द ही डूडना पड़ेगा । जो मैने सरकारी सकूल में गाड़ी लगाकर बच्चो को घर तक पहुंचाने की बात की तो इसका एक उदहारण मैने भोरंज तहसील के एक स्कूल में देखा जहा एक दम से बच्चो का पलायन हुआ और बहा की एक समझदार अध्यापिका ने अपने विवेक से जाना और पाया की आखिर क्यों बच्चे पलायन कर रहे है उन्होंने गाड़ी की व्यवस्था की और सकूल फिरसे बच्चो से भर गया । ये एक प्रयोग था जो उन्होंने किया जिसके परिणाम बहुत अच्छे थे और सबके सामने थे । मुझे लगता है ऐसा प्रयोग हिमाचल के हर सकूल में किया जाना चाहिए। साथ ही अध्यापकों के प्रति भी सरकार को थोड़ा सख्त होना पड़ेगा , आया राम और गया राम से कुछ नही होने वाला । 

और अंत में ये मिड डे मील से जायदा जरूरी शिक्षा है तो इस पर ध्यान केंद्रित किया जाए ।

अंकुश 


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