ईसे शेयर कहो या गजल कुछ कडिंया लिखी है ,शायद आपको पसंद आये..ईस वार पहाडी में नहीं हिन्दी में है..
वो भी जमाना था जव हम भी आशिक हुआ करते थे...
हम भी किसी पर दिलों जां से मरा करते थे...
वो छोड गये हमें ईतना पिछे जिनके लिये हम भी कभी जान दिया करते थे...
एक वही तो थे जिन पर हम मरा करते थे.... पर वो हमेशा ना जाने हमसे कयों दुर रहा करते थे...
उसकी ईसी खामोसी से तो हम डरते थे..
वो भी जमाना था जव हम आशीक हुआ करते थे.....................
कर दी मैने जिदंगी उसकी याद मे कुर्वान पर मोहव्वत रास ना आयी...
मैं लिखता रहा नाम तेरे की चिट्टीयां पर तुझे मेरी याद ना आयी....
तोड दिये रिस्ते वो तुमने सारे ,वस उदासी ही मेरी जिंदगी में छायी....
टुट गया हुं अंदर से ईस कदर, ईश्क मे मार है ऐसी खायी....
लिखने वैठा तो कुछ लाईनें ये जहन में आयी..
प्यार में हमने सिर्फ ठोकरें ही खायी...
लिखे हुये मेरे शव्दों के दर्द की कहानी वन गयी...
कुछ शायरी वनी तो कुछ गजलें वन गयी....
जो सजी थी किसी जमाने में महवुव की याद से चिट्ठियों में, अव ना जाने कयों वो रद्दी वन गयीं....
;(
वो भी जमाना था जव हम भी आशीक हुआ करते थे...
हम भी किसी पर दिलों जान से मरा करते थे....... क्रमश:.......
‪#‎अंकुशठाकुर‬ 11:15 PM 2014

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