नमस्कार , दलित VS politics , आजकल यही शब्द ट्रैंड कर रहे हैं , जैसे ही उतर भारत मे चुनाव आने लगते है यह शव्द सुनना और पढना आम हो जाते हैं , कुछ एक तवका जो खुद को दलितो का मसिहा समझता है ईस समय एक्टिव मोड मे औन हो जाता है पर असल मे वो सिर्फ वोट राजनिति तक सीमित रहता है , हिन्दुस्तान मे वैसे तो कयी वैंक है मुझे सवका नाम याद भी नहीं पर यहां ईंसानो की भावनाओ का ,जात के नाम पर स्वार्थ साधने का एक खास वैंक है जिसे हमारे वुद्धिजीवी और नेतागण वोट वैंक कहते हैं , ईस वैंक का दुर्भाग्य कहे या ईस वैंक मे अपनी वोट नामक पूंजी को अपने उज्जवल भविष्य का सपना देखने वालो का अभाग्य ईसमे वोट द्वारा दी गयी पूंजी ईन्वैस्ट तो होती है पर वो ना तो वापिस मिलती है और ना ही ईस पर उनको कोई व्याज मिलता है , हां उन अभाग्य श्रेणी के भारतीयो को देखने के लिये मूर्त्तियां वेशक मिल जाती है , पर अगर मूर्तियां देख कर पेट भरता हो तो वेशक देखनी चाहिये और तव तक देखते रहना चाहिये जव तक पेट भरे ना , खैर ईनको दलितो की याद तभी आती जव चुनाव होते है दलित शव्द पर विहार ,उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश और झारखंड मे ज्यादा राजनीति होती ह...
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